अभी इस फ़िक्र से निकला नहीं हूँ मैं क्या हूँ और आख़िर क्या नहीं हूँ मुझे तुम मेरे मौसम ही में पढ़ना निसाब-ए-नस्ल-ए-आइंदा नहीं हूँ वफ़ादारी किनारों से जो बदले मैं दरियाओं का वो रस्ता नहीं हूँ जो दिल की धड़कनों की हम-नवा है उसी आवाज़ पर पल्टा नहीं हूँ बहुत से मसअले हैं ज़िंदगी में मगर तुझ को तो मैं भूला नहीं हूँ मैं तेरी दस्तरस में तो नहीं था तिरे इम्कान में भी क्या नहीं हूँ बहुत सोचा तिरे नज़दीक आ कर मैं तेरे पास हूँ भी या नहीं हूँ जो दुनिया तुझ से वाक़िफ़ ही नहीं है मैं उस दुनिया का बाशिंदा नहीं हूँ