अभी ख़ामोश हैं शोलों का अंदाज़ा नहीं होता मिरी बस्ती में हंगामों का अंदाज़ा नहीं होता जिधर महसूस हो ख़ुशबू उसी जानिब बढ़े जाओ अँधेरी रात में रस्तों का अंदाज़ा नहीं होता जो सदियों की कसक ले कर गुज़र जाते हैं दुनिया से मोअर्रिख़ को भी उन लम्हों का अंदाज़ा नहीं होता ये रहबर हैं कि रहज़न हैं मसीहा हैं कि क़ातिल हैं हमें अपने नुमाइंदों का अंदाज़ा नहीं होता नज़र हो लाख गहरी और बसीरत-आश्ना फिर भी नक़ाबों में कभी चेहरों का अंदाज़ा नहीं होता ज़मीं पर आओ फिर देखो हमारी अहमियत क्या है बुलंदी से कभी ज़र्रों का अंदाज़ा नहीं होता वफ़ाओं के तसलसुल से भी अक्सर टूट जाते हैं मोहब्बत के हसीं रिश्तों का अंदाज़ा नहीं होता उतर जाते हैं रूह ओ दिल में कितनी वुसअतें ले कर ग़ज़ल के दिलरुबा लहजों का अंदाज़ा नहीं होता सलीक़े से सजाना आईनों को वर्ना ऐ 'रज़्मी' ग़लत रुख़ हो तो फिर चेहरों का अंदाज़ा नहीं होता