अभी से आफ़त-ए-जाँ है अदा अदा तेरी ये इब्तिदा है तो क्या होगी इंतिहा तेरी मिरी समझ में ये क़ातिल न आज तक आया कि क़त्ल करती है तलवार या अदा तेरी नक़ाब लाख छुपाए वो छुप नहीं सकती मिरी नज़र में जो सूरत है दिलरुबा तेरी लहू की बूँद भी ऐ तीर-ए-यार दिल में नहीं ये फ़िक्र है कि तवाज़ो करूँ मैं क्या तेरी सुँघा रही है मुझे ग़श में निकहत-ए-गेसू ख़ुदा दराज़ करे उम्र ऐ सबा तेरी अदा पे नाज़ तो होता है सब हसीनों को फ़ज़ा को नाज़ है जिस पर वो है अदा तेरी 'जलील' यार के दर तक गुज़र नहीं न सही हज़ार शुक्र कि है उस के दिल में जा तेरी