अभी तो दिल में है जो कुछ बयान करना है ये बाद में सही किस बात से मुकरना है तू मेरे साथ कहाँ तक चलेगा मेरे ग़ज़ाल मैं रास्ता हूँ मुझे शहर से गुज़रना है कनार-ए-आब मैं कब तक गिनूँगा लहरों को है शाम सर पे मुझे पार भी उतरना है अभी तो मैं ने हवाओं में रंग भरने हैं अभी तो मैं ने उफ़ुक़ दर उफ़ुक़ बिखरना है दिलेर हैं कि अभी दोस्तों में बैठे हैं घरों को जाते हुए साए से भी डरना है मैं मुंतज़िर हूँ किसी हाथ का बनाया हुआ कि उस ने मुझ में अभी और रंग भरना है हज़ार सदियों की रौंदी हुई ज़मीं है 'नसीम' नहीं हूँ मैं कि जिसे पहला पाँव धरना है