अभी तो महव-ए-तजल्ली हैं सब दुकानों पर पलट के देखिए आते हैं कब मकानों पर ख़याल-ए-ख़ाम में गुज़री है ज़िंदगी सारी हक़ीक़तों का गुमाँ है अभी फ़सानों पर क़दम क़दम पे तज़ादों से साबिक़ा है जहाँ यक़ीन कैसे करे कोई इन गुमानों पर वो जिस की चाह में मर मर के जी रहे हैं यहाँ न जाने कौन सी बस्ती है आसमानों पर जहाँ भी तीर लगा बस वही हदफ़ ठहरा है फिर भी ज़ो'म बहुत उन को इन कमानों पर मैं उन की बात को किस तौर मो'तबर जानूँ मदार-ए-ज़ीस्त ही जिन का है कुछ बहानों पर कड़ी है धूप झुलसती हैं अब दलीलें सभी यक़ीं है फिर भी उन्हें कितना साएबानों पर नज़र में ज़ेहन में दिल में कुशादगी लाओ हवा के रुख़ का तक़ाज़ा है बादबानों पर न जाने कितनी ही सदियाँ लगेंगी और अभी दिलों की बात जब आ पाएगी ज़बानों पर अजीब उन को सलीक़ा है खुल के जीने का नई है कौन सी तोहमत ये हम दिवानों पर हमारी ज़ात से आबाद कुछ ख़राबे हैं है अपने दम से उजाला कई मक़ामों पर ख़िरद-नवाज़ जुनूँ और जुनूँ-नवाज़ ख़िरद हैं अब भी नूर तरीक़े ये कुछ ठिकानों पर उसे जगाओ डसे तुम को मार डाले तुम्हें तुम्हारी ज़ात में बैठा है जो ख़ज़ानों पर