अभी वो कमसिन उभर रहा है अभी है उस पर शबाब आधा अभी जिगर में ख़लिश है आधी अभी है मुझ पर इताब आधा हिजाब ओ जल्वे की कशमकश में उठाया उस ने नक़ाब आधा इधर हुवैदा सहाब आधा उधर अयाँ माहताब आधा मिरे सवाल-ए-विसाल पर तुम नज़र झुका कर खड़े हुए हो तुम्हीं बताओ ये बात क्या है सवाल पूरा जवाब आधा लपक के मुझ को गले लगाया ख़ुदा की रहमत ने रोज़-ए-महशर अभी सुनाया था मोहतसिब ने मिरे गुनह का हिसाब आधा बजा कि अब बाल तो सियह हैं मगर बदन में सकत नहीं है शबाब लाया ख़िज़ाब लेकिन ख़िज़ाब लाया शबाब आधा लगा के लासे पे ले के आया हूँ शैख़ साहब को मय-कदे तक अगर ये दो घोंट आज पी लें मिलेगा मुझ को सवाब आधा कभी सितम है कभी करम है कभी तवज्जोह कभी तग़ाफ़ुल ये साफ़ ज़ाहिर है मुझ पे अब तक हुआ हूँ मैं कामयाब आधा किसी की चश्म-ए-सुरूर आवर से अश्क आरिज़ पे ढल रहा है अगर शुऊर-नज़र है देखो शराब आधी गुलाब आधा पुराने वक़्तों के लोग ख़ुश हैं मगर तरक़्क़ी पसंद ख़ामोश तिरी ग़ज़ल ने किया है बरपा 'सहर' अभी इंक़िलाब आधा