अब्र-ए-बहाराँ दुश्मन अपना फूल से ख़ाली आँगन अपना लाख बचाएँ गुल-चीनों से ज़द में है इस की गुलशन अपना हिर्स-ओ-हवा से मक्र-ओ-रिया से पाक है अब तक दामन अपना हरियाली की जोत जगाए बरखा-रुत में ख़िरमन अपना ममता का हर ज़िक्र हिण्डोला झूल रहा है बचपन अपना अहल-ए-वफ़ा पे क्या बीती है बोल रहा है दर्पन अपना वक़्त 'जमील' आया है ऐसा बोझ बना है जीवन अपना