अब्र का टुकड़ा कोई बाला-ए-बाम आता हुआ मेरे घर भी सब्ज़ मौसम का पयाम आता हुआ धूप की बुझती तमाज़त की सिपर लेता चलूँ फिर उफ़ुक़ से धीरे धीरे वक़्त-ए-शाम आता हुआ फिर दर-ए-दिल पर हुई हैं रौशनी की दस्तकें फिर सितारा सा कोई बाला-ए-बाम आता हुआ एक मुबहम सा तसव्वुर एक बे-चेहरा सा नाम मेरी तन्हाई में अक्सर मेरे काम आता हुआ कोई क़तरे में समुंदर देख कर सैराब है कोई दरिया से मुसलसल तिश्ना-काम आता हुआ