अचानक किसी ने जो चिलमन उठा दी क़यामत से पहले क़यामत बुला दी कहीं माह-रुख़ से उठा ज्वार-भाटा कहीं तेग़-ए-अबरू ने आफ़त मचा दी कहीं पर तग़ाफ़ुल कहीं पर तबस्सुम किसी की बिगाड़ी किसी की बना दी किसी के बयाबाँ को गुलशन बनाया किसी के गुलिस्ताँ पे बिजली गिरा दी निगाहों में उस की बसाई थी दुनिया बदल कर नज़र उस ने दुनिया मिटा दी जो देखा मोहब्बत से ज़ख़्म-ए-जिगर को हरे घाव में एक बर्छी चुभा दी