अच्छा हूँ या बुरा हूँ मुझे कुछ नहीं पता नज़रों में तेरे क्या हूँ मुझे कुछ नहीं पता क्या तुझ में ढूँढता हूँ मुझे कुछ नहीं पता मैं तेरा हो गया हूँ मुझे कुछ नहीं पता आगाह हूँ मैं मंज़िल-ए-मक़्सूद से मगर किस सम्त जा रहा हूँ मुझे कुछ नहीं पता आवाज़ दे रहा है मुझे कौन बार बार किस के लिए रुका हूँ मुझे कुछ नहीं पता इतना मुझे पता है तुम्हें हूँ अज़ीज़ मैं लेकिन तुम्हारा क्या हूँ मुझे कुछ नहीं पता दीमक की तरह चाट रहा है जो कौन है किस ग़म में घुल रहा हूँ मुझे कुछ नहीं पता मैं ख़ूब जानता हूँ ये मंज़िल नहीं मिरी आ कर कहाँ रुका हूँ मुझे कुछ नहीं पता रहता हूँ किस ख़याल में 'नायाब' इन दिनों क्या क्या मैं सोचता हूँ मुझे कुछ नहीं पता