अच्छे नहीं हैं वक़्त के तेवर मिरे अज़ीज़ रहना है अपनी खाल के अंदर मिरे अज़ीज़ तेरी मुनाफ़िक़त पे मुझे कोई शक नहीं मेरे रफ़ीक़ मेरे बरादर मिरे अज़ीज़ आ तेरी तिश्नगी का मुदावा है मेरे पास मेरा लहू हलाल है तुझ पर मिरे अज़ीज़ एहसास जिस का नाम है वो चीज़ मुस्तक़िल चुभती है मेरे ज़ेहन के अंदर मिरे अज़ीज़ और इस में तैर कर मुझे होना है सुर्ख़-रू दरपेश है लहू का समुंदर मिरे अज़ीज़ नादान वाहिमों के तआक़ुब से बाज़ आ कोई नहीं किसी का यक़ीं कर मिरे अज़ीज़ मुमकिन जो हो तो उस से रिहाई दिला मुझे मुझ पर है बार-ए-दोश मिरा सर मिरे अज़ीज़ इज़हार-ए-हक़ से बाज़ कब आते हैं ऐसे लोग 'राही' हो या हों 'शाद'-ओ-'मुज़फ़्फ़र' मिरे अज़ीज़