अँधेरी शब है ज़रूरत नहीं बताने की मिरी तरफ़ से इजाज़त है लौट जाने की कोई तो हो जो मिज़ाज-ए-आश्ना-ए-दिलबर हो किसी के पास तो चाबी हो इस ख़ज़ाने की वो चाहता तो मुझे संग-दिल बना देता ज़्यादती मिरे दिल पर मिरे ख़ुदा ने की मैं दूसरों के घरों को बचा रहा हूँ मगर किसी को फ़िक्र नहीं मेरा घर बचाने की मैं अपने आप से मुंकिर हुआ तो टूट गया ये दुश्मनी मिरे अंदर की इंतिहा ने की जिसे हरीफ़ समझ कर किया है क़त्ल 'नियाज़' वो आबरू था उसी बे-नवा घराने की