अँधेरी शब में चराग़-ए-रह-ए-वफ़ा देना तअ'ल्लुक़ात को नज़दीक से सदा देना जहाँ खड़ी हूँ वहाँ से पलट नहीं सकती अभी न मुझ को मोहब्बत का वास्ता देना मैं बेबसी का सलीक़ा निभाऊँगी कब तक बढ़े जो प्यास चराग़-ए-सदा बुझा देना बुझे बुझे सभी मंज़र हैं आश्नाई के मिरे लबों को कोई हर्फ़-ए-मुद्दआ' देना उमीद हाथ से दामन अगर छुड़ाने लगे तो फिर मुझे भी मिरे शहर का पता देना भटक न जाऊँ कहीं ग़म की रहगुज़ारों में निगाह-ओ-दिल को उजालों का रास्ता देना रफ़ाक़तों को जो तन्हाइयाँ सताने लगें उदासियों को कोई रंग-ए-आश्ना देना अगर तुम्हें भी कोई इख़्तियार मिल जाए तो फिर तड़पते दिलों को कहीं मिला देना लिखे हैं अश्कों से लम्हात-ए-ज़िंदगी 'ऊषा' उन्हें किताब-ए-मोहब्बत में तुम सजा देना