अधूरे ख़्वाब टहलते हैं घर के आँगन में सिरहाने नींद का झोका खड़ा सा रहता है दुखों की झील में यादों का तन्हा चाँद कोई उदास रात को तकता हुआ सा रहता है तुम्हारी आँख का काजल भिगो दिया किस ने तुम्हारी रुख़ का दिया क्यों बुझा सा रहता है तुझे ये क्या हुआ 'अफ़रोज़' ख़ुद को भूल गया तू किस की याद में उलझा हुआ सा रहता है