अदू तो छोड़ दिए ख़ैर-ख़्वाह मार दिए मुहाफ़िज़ों ने कई बे-गुनाह मार दिए बहुत सताए हुए लश्करों की हैबत ने दरून-ए-क़स्र कई बादशाह मार दिए लहू तड़पने लगा है कि सुर्ख़ नोटों ने भरी कचहरी में सारे गवाह मार दिए अंधेरा जब भी बढ़ाया गया ज़माने में चराग़-ए-हक़ ने सभी रू-सियाह मार दिए जब आई बात कभी हमसरी से मसनद पर तो सरबराहों ने कुछ सरबराह मार दिए नहीं है वक़्त सा 'आदिल' कोई यहाँ जिस ने कुलाहें रोल दीं और कज-कुलाह मार दिए