वा'दा-ए-वस्ल-ए-यार ने मारा शिद्दत-ए-इंतिज़ार ने मारा मुन्फ़इल हो के यार ने मारा शिकवा-ए-बार बार ने मारा न छुपा राज़-ए-दिल मगर न छुपा दीदा-ए-अश्क-बार ने मारा बन के तक़दीर राह-ए-ग़ुर्बत में जुम्बिश-ए-चश्म-ए-यार ने मारा वादा-ए-बे-वफ़ा वफ़ा न हुआ मुझ को इस ए'तिबार ने मारा सदक़े दिल ऐसी राज़दारी पर जिस को हो राज़दार ने मारा ग़म्ज़ा-ए-जाँ-सेताँ मआ'ज़-अल्लाह शोख़ी-ए-हुस्न-ए-यार ने मारा बढ़ गया और भी जुनूँ 'अफ़्क़र' आ के फ़स्ल-ए-बहार ने मारा