अफ़्साना चाहते थे वो अफ़्साना बन गया मैं हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ से दीवाना बन गया वो इक निगाह देख के ख़ुद भी हैं शर्मसार ना-आगही में यूँही इक अफ़्साना बन गया मौज-ए-हवा से ज़ुल्फ़ जो लहरा गई तिरी मेरा शुऊ'र लग़्ज़िश-ए-मस्ताना बन गया हुस्न एक इख़तियार-ए-मुकम्मल है आप ने दीवाना कर दिया जिसे दीवाना बन गया ज़िक्र उस का गुफ़्तुगू में जो शामिल हुआ 'अदम' जो शे'र कह दिया वो परी-ख़ाना बन गया