अफ़्साना-ए-हयात को दोहरा रहे हैं हम अपने किए की आप सज़ा पा रहे हैं हम ऐ चश्म-ए-यार तेरी निगाहों का शुक्रिया अब ज़िंदगी-ओ-मौत को बहला रहे हैं हम छेड़ा था हम ने ज़िक्र किसी बज़्म-ए-नाज़ का कहने लगे वो हँस के चलो आ रहे हैं हम ये रहगुज़र है कौन सी कुछ सूझता नहीं ऐ बे-ख़ुदी बता कि कहाँ जा रहे हैं हम छेड़ा जो हम ने राह में ज़ाहिद ने ये कहा फिर आज मय-कदे की तरफ़ जा रहे हैं हम तारीक रहगुज़र ने बड़े फ़ख़्र से कहा अब 'रौशनी' के गीत ग़ज़ल गा रहे हैं हम