फ़र्ज़ी दा'वेदार है अपनी जो भी यारी है मेरे वादे पर मत जा ये बिल्कुल सरकारी है वक़्त को कोसो के उस की रग रग में मक्कारी है और भला क्या है जीना मरने की तय्यारी है इक बस तू ही है तेरा बाक़ी दुनिया दारी है और तो क्या करते तन्हा ख़ुद से ही झक मारी है तुम को पढ़ कर भूल गया दिल भी कैसा कारी है दिल ने इश्क़ की नाकामी क़िस्मत पर दे मारी है ग़म को अमाँ देना 'आٖफ़ी' सदमों की फ़नकारी है