अगले पड़ाव पर यूँही ख़ेमा लगाओगे जितनी भी है सफ़र की थकन भूल जाओगे बाहर हवा-ए-तेज़ लगाए हुए है घात घर से जो निकले अब कि पलट कर न आओगे हर शख़्स अपने आप में मसरूफ़ है यहाँ किस को फ़साना-ए-दिल-मुज़्तर सुनाओगे ताबिंदा-ख़्वाब देख कर आँखें खुलेंगी जब ज़ुल्मात के बग़ैर यहाँ कुछ न पाओगे इक दूसरे से हो के अलग ख़ुश रहेगा कौन तड़पेंगे हम भी ख़ुद भी तुम आँसू बहाओगे जा तो रहे हो जिंस-ए-वफ़ा की तलाश में साथ अपने यासियत के सिवा कुछ न लाओगे गिर्दाब सामने है मुख़ालिफ़ हवाएँ हैं कश्ती को कैसे जानिब-साहिल घुमाओगे जिस को ख़ुलूस समझे हुए थे वो क्या हुआ कितना यक़ीन था तुम्हें धोका न खाओगे पर्बत हैं बर्फ़-पोश क़दम देख-भाल कर 'आबिद' फिसल गए तो सँभलने न पाओगे