अगर बदला कभी रुख़ बे-रुख़ी का तो आएगा मज़ा कुछ ज़िंदगी का मुझे बर्बाद कर के हँस रहे हो लिया है तुम ने ये बदला कभी का इसी उम्मीद पर ग़म सह रहा हूँ कभी तो आएगा मौक़ा' ख़ुशी का मुझे दिल से भुलाना चाहते हो यही है मुद्दआ' दामन-कुशी का मोहब्बत में गई इज़्ज़त तो क्या ग़म यहाँ ये हश्र होता है सभी का कभी होगा शगुफ़्ता दिल का ग़ुंचा कभी बदलेगा रंग अफ़्सुर्दगी का मुझे 'अफ़ज़ल' डुबोया है उसी ने जिसे समझे सहारा ज़िंदगी का