अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले गुल ओ रैहाँ सूँ रंग-ओ-बू शिताबी पेशवा निकले खिले हर ग़ुंचा-ए-दिल ज्यूँ गुल-ए-शादाब शादी सूँ अगर टुक घर सूँ बाहर वो बहार-दिल-कुशा निकले ग़नीम-ए-ग़म किया है फ़ौज-बंदी इश्क़-बाज़ां पर बजा है आज वो राजा अगर नौबत बजा निकले निसार उस के क़दम ऊपर करूँ अंझुवाँ के गौहर सब अगर करने कूँ दिल-जूई वो सर्व-ए-ख़ुश-अदा निकले सनम आए करूँगा नाला-ए-जाँ-सोज़ कूँ ज़ाहिर मगर उस संग-दिल सूँ मेहरबानी की सदा निकले रहे मानिंद-ए-लाल-ए-बे-बहा शाहाँ के ताज ऊपर मोहब्बत में जो कुइ अस्बाब ज़ाहिर कूँ बहा निकले बख़ीली दर्स की हरगिज़ न कीजो ऐ परी-पैकर 'वली' तेरी गली में जब कि मानिंद-ए-गदा निकले