अगर हवाओं के रुख़ मेहरबाँ नहीं होते तो बुझती आग के तेवर जवाँ नहीं होते दिलों पे बर्फ़ जमी है लबों पे सहरा है कहीं ख़ुलूस के झरने रवाँ नहीं होते हम इस ज़मीन को अश्कों से सब्ज़ करते हैं ये वो चमन है जहाँ बाग़बाँ नहीं होते कहाँ नहीं हैं हमारे भी ख़ैर-ख़्वाह मगर जहाँ गुहार लगाओ वहाँ नहीं होते इधर तो आँख बरसती है दिल धड़कता है ये सानेहात तुम्हारे यहाँ नहीं होते वफ़ा का ज़िक्र चलाया तो हँस के बोले वो फ़ुज़ूल काम हमारे यहाँ नहीं होते