अगरचे दिल को ले साथ अपने आया अश्क मिरा निगाह में तिरी हरगिज़ न भाया अश्क मिरा मैं तेरे हिज्र में जीने से हो गया था उदास पे गर्म-जोशी से क्या क्या मनाया अश्क मिरा हज़र ज़रूरी है ऐ सर्व-ए-नाज़ इस से तुझे कि आबशार-ए-मिज़ा को बहाया अश्क मिरा हुआ है कौन से ख़ुर्शीद-रू से गर्म इतना कि मेरे दिल को जो ऐसा जलाया अश्क मिरा ब-रंग-ए-ग़ुंचा-ए-अफ़्सुर्दा हो गया था ये दिल सो वैसे मुर्दा को पल में जलाया अश्क मिरा हुआ वो जब नज़र-अंदाज़ यार का 'आगाह' मुझे ये बे-असरी पर हँसाया अश्क मिरा