अगरचे मैं ख़त-ए-जादा पे इक गर्द-ए-सफ़र हूँ खटकता हूँ मगर फिर भी कि मंज़िल की ख़बर हूँ ये मौज-ए-ख़ूँ है सैराबी-ए-दिल का इक इशारा सो इक ख़ाक-ए-नुमू-रफ़्ता पे ही महव-ए-सफ़र हूँ ये उम्र-ए-ख़ाक-पैमा इक तमन्ना से भी कम है सो कितनी ख़्वाहिशों से मैं अभी तक बे-ख़बर हूँ खुले हैं रंग-ए-इम्कानात आइंदा के मुझ पर निराली मेरी ख़ुशबू है मैं मिट्टी का शजर हूँ जमाल-ए-साअ'त-ए-सद-रंग को मैं शेर कर दूँ मैं कब से इस जुनूँ-अंगेज़ के ज़ेर-ए-असर हूँ तह-ए-सतर-ए-तमन्ना देख लूँ दिल का तड़पना ज़ियादा तो नहीं इतना तो मैं साहिब-ए-नज़र हूँ