अगरचे मस्लहत-आमेज़ ही है कड़े लहजे से बेहतर ख़ामुशी है नज़र की प्यास तो नज़रों से पूछो हैं ज़ेर-ए-आब फिर भी तिश्नगी है वही छूते हैं अक्सर आसमाँ को जबीं जिन की ज़मीनों पर झुकी है वरक़ आहिस्तगी से खोलिएगा बहुत ख़स्ता किताब-ए-ज़िंदगी है मरासिम पहले भी अच्छे नहीं थे मगर अब तो दिलों में बे-दिली है मिरी बेचारगी पर हँस रहा है ये मेरा दोस्त है या अजनबी है तिरी सरगोशियों का ये असर है अना मैं रच गई इक नग़्मगी है