अहद-ए-सद-मसलहत-अंदेश निभाना पड़ेगा मुस्कुराने के लिए ग़म को भुलाना पड़ेगा जानते हैं कि उजड़ जाएँगे हम अंदर से मानते हैं कि तुम्हें शहर से जाना पड़ेगा आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ पे कोई जश्न तो हो दोस्तो दिल पे कोई ज़ख़्म खिलाना पड़ेगा चश्म-ए-बद-दूर यही इक मिरा सरमाया है तेरी यादों को ज़माने से छुपाना पड़ेगा तुम्हें जाना है चले जाओ मगर शर्त ये है कि बिला-नाग़ा तुम्हें ख़्वाब में आना पड़ेगा ख़ुद को पहचान नहीं पाएँगे चेहरों वाले उन्हें आईना-ए-औक़ात दिखाना पड़ेगा नज़र-अंदाज़ भी कर सकते हो इख़्लास मिरा ये कोई क़र्ज़ नहीं है जो चुकाना पड़ेगा शाइ'री हो तो नहीं सकती कभी तेरा बदल क्या करें दिल तो कहीं और लगाना पड़ेगा थक न जाए वो कहीं हम पे सितम करते हुए 'यासिर' उस का भी हमें हाथ बटाना पड़ेगा