अहद-ए-रफ़्ता के उजालों की सदा हैं हम भी क़र्तबा तेरी तरह रद्द-ए-फ़ना हैं हम भी बाद-ए-यख़-बस्ता चली है तो चले ख़ूब चले जलते तपते हुए सहरा की सदा हैं हम भी उम्र-ओ-अय्यार की ज़म्बील में रक्खा क्या है हक़ की तलवार हैं हमज़ा की सदा हैं हम भी सेहर क्या चीज़ है बातिल की हक़ीक़त किया है वक़्त के हाथ में मूसा का असा हैं हम भी कासा-ए-शब में उजाला मह-ए-नख़शब का है और चढ़ते हुए सूरज की ज़िया हैं हम भी अहद-ए-नौ अपनी ज़बानों पे सजा ले हम को अपने अस्लाफ़ की पाकीज़ा दुआ हैं हम भी 'शम्स' क्या ख़ौफ़ अँधेरों से भला हो हम को रात वालों के लिए सुब्ह-नुमा हैं हम भी