अहल-ए-ख़ाना की भी नाराज़गी की बातें कर ख़ुद से ख़ुद की कभी आवारगी की बातें कर बात ख़ारों की हो अंदाज़ में तल्ख़ी वाजिब फूल शादाब हैं शाइस्तगी की बातें कर बे-ज़बाँ आस लिए देखते हैं जो तुझ को उन को दे कर ज़बाँ वाबस्तगी की बातें कर कोई हालात से मजबूर भी हो सकता है आज हालात की नासाज़गी की बातें कर उन का ग़ुस्से में अमल ठीक नहीं था माना अब ज़रा अपनी भी दीवानगी की बातें कर हो न मुमकिन अगर इमदाद-ए-ग़रीबाँ 'अख़्तर' दिल-ख़राशी नहीं दिल-बस्तगी की बातें कर