मीज़ान-ए-वाक़िआ'त में तोला नहीं गया इतना वो ना-सिपास था लिक्खा नहीं गया ख़ुश्बू की आरज़ू में सज़ा क़ैद की हुई सहरा उठा के लाए तो पूछा नहीं गया यूँ भी मैं अपने बारे में कुछ लिख नहीं सका लफ़्ज़ों का शोर ऐसा था सोचा नहीं गया दोनों को फ़र्त-ए-शौक़ ने लब-बस्ता कर दिया वो चुप रहा तो हम से भी बोला नहीं गया क़र्ज़-ए-फ़िराक़ मैं ने मुकम्मल चुका दिया लेकिन मिरे हिसाब से काटा नहीं गया कैसे भला फ़साने में सच की तलाश हो लफ़्ज़ों का हेर-फेर ही पकड़ा नहीं गया ऐसे सफ़र-नसीब हैं पुश्तों से हम 'अमीर' अब तक हमारे पाँव का छाला नहीं गया