किस का शोअ'ला जल रहा है शो'लगी से मावरा कौन रौशन है भला इस रौशनी से मावरा जीते जी तो कुछ नहीं देखा नज़र से हाँ मगर हैरतें ढूँडा किए इस हैरती से मावरा कौन सा आलम है मालिक तेरे आलम में निहाँ कौन सज्दे में छुपा है बंदगी से मावरा कोई तो बतलाएगा आगे कहाँ मुड़ती है राह कोई तो होगी ज़मीं उस मल्गजी से मावरा बात जीने की अदा तक ख़ूबसूरत है मगर ज़िंदगी कुछ और है इस ज़िंदगी से मावरा ख़ाक-बस्ता फिर रहा है कौन सी बस्ती में दिल कौन आख़िर ख़स्ता-जाँ है ख़स्तगी से मावरा इक नगर तरसा हुआ है और सहरा है तवील और इक नद्दी है कोई तिश्नगी से मावरा कब से ख़ाली हाथ है याँ एक ख़िल्क़त इश्क़ की हम भी हो जाएँगे एक दिन बेबसी से मावरा इन फ़रावाँ ने'मतों और बरकतों के बावजूद कोई मुफ़्लिस चल दिया है मुफ़्लिसी से मावरा अपनी दुनिया में अगर फैली है तारीकी तो क्या दिन कहीं निकला तो होगा तीरगी से मावरा