एहसास-ए-इश्क़ दिल की पनाहों में आ गया बादल सिमट के चाँद की बाहोँ में आ गया इज़हार-ए-इश्क़ मैं ने किसी से नहीं किया और बे-सबब जहाँ की निगाहों में आ गया वो मुस्कुरा के देख रहे हैं मिरी तरफ़ इतना असर तो अब मिरी आहों में आ गया क्या पूछते हो अज़्म-ए-सफ़र की करामातें मंज़िल का नक़्श ख़ुद मिरी राहों में आ गया हैं इब्तिदाई मरहले ये इश्क़ के अभी 'साहिल' ये सोज़ क्यूँ तिरी आहों में आ गया