अहवाल-ए-रंज बज़्म में कहना मुहाल है कहते हैं ख़ूब शे'र कहा है कमाल है कितना हसीं उरूज है कैसा जमाल है लेकिन अज़ल से तय है कि इक दिन ज़वाल है शायद वो इक सराब है लेकिन मैं क्या करूँ मेरा वही है दश्त में पुर्सान-ए-हाल है पूछा गया है मुझ से तिरा कौन है ख़ुदा या-रब्ब-ए-आलमीन ये कैसा सवाल है डरने का दे दिया है वबा ने नया सबब बाक़ी हर एक ख़ौफ़ यहाँ हस्ब-ए-हाल है