ऐ फ़लक उजलत न कर बिजली गिराने के लिए चंद तिनके और चुन लूँ आशियाने के लिए ज़िंदगी ने पाई थीं दो साअ'तें रोज़-ए-अज़ल एक ग़म बहने को और इक मुस्कुराने के लिए क्या करे जब इश्क़ ही को ताब-ए-नज़्ज़ारा न हो हुस्न ख़ुद बेताब है जल्वा दिखाने के लिए बे-हिसी से भी कहीं तस्ख़ीर होता है जहाँ हौसला दरकार है दुनिया पे छाने के लिए क्यों न ऐ 'तालिब' दर-ए-जानाँ पे झुक जाए जबीं है यही इक आस्ताँ बिगड़ी बनाने के लिए