ऐ मुसाफ़िर मेरा कहना याद रख लुट न जाए शहर-ए-दिल आबाद रख सोच को एहसास पर ग़ालिब न कर ज़िंदगी को ख़ौफ़ से आज़ाद रख ज़िंदगी की चाहतें रानाइयाँ तू हमेशा अपने दिल को शाद रख ज़ुल्म का ब्योपार चल सकता नहीं ध्यान इतना ऐ सितम-ईजाद रख ढंग आ जाएगा जीने का तुझे डूबते सूरज का मंज़र याद रख मैं बदल दूँगा ज़माने का मिज़ाज पहले तू सच्चाई की बुनियाद रख