ऐ वक़्त हम-क़दम तिरे चलना न आ सका क्यों मौसमों के साथ बदलना न आ सका लोगों ने आसमाँ के सितारों को छू लिया हम को रिवायतों से निकलना न आ सका वो रहम की नज़र से हमें देखते ही क्यों दामन पकड़ के हम को मचलना न आ सका हम अपनी हाजतों की ग़ुलामी में आ गए ज़िंदाँ की बंदिशों से निकलना न आ सका वाक़िफ़ थे ज़िंदगी के नशेब-ओ-फ़राज़ से यूँ हल्क़ा-ए-ख़ुदी से निकलना न आ सका दुनिया बदल चुकी है तअ'य्युश में ज़िंदगी हम को तो इक नफ़स भी बदलना न आ सका अपनी नज़र से गिर के सँभल भी गए तो 'शाद' उन की नज़र से गिर के सँभलना न आ सका