ऐन मुमकिन है ये दुनिया तुझे शहकार लगे उस की ता'मीर में हम जैसे गुनहगार लगे देखने में तो बहुत फूल थे उस टहनी पर छू के देखा तो सभी फूल हमें ख़ार लगे मैं ने तो ज़ख़्म ख़रीदे हैं न बेचे हैं कभी फिर भी ये दिल कि कोई दर्द का बाज़ार लगे इक जवाँ ग़म का नतीजा है कि अक्सर मुझ को राह चलता हुआ हर शख़्स अज़ादार लगे नाख़ुदा नींद में है और समुंदर बेदार सीना-ए-मौज पे कब देखिए पतवार लगे ऐसी तस्वीर बनाऊँगा मैं दरिया की 'अदील' वो जो उस पार नज़र आता है इस पार लगे