ऐसा हो ज़िंदगी में कोई ख़्वाब ही न हो अँधियारी रात में कोई महताब ही न हो सूखे दरख़्त की तरह दरिया में गिर पड़ें मरने के वास्ते कोई सैलाब ही न हो पूजा करें मगर न दुआ को उठाएँ हाथ शहर-ए-हवस में म'अबद-ए-अर्बाब ही न हो मर जाएँ इस से पहले कि वो फ़ैसला करें हाथों में कोई प्याला-ए-ज़हराब ही न हो 'मामून' जल के ख़ाक में मिल जाए चश्म-ए-तर आँसू बहाने चश्मा-ए-सरदाब ही न हो