ऐसा नहीं दुआओं में माँगा नहीं तुझे क़िस्मत में ही नहीं था जो पाया नहीं तुझे दिल तो अक़ीदतों की हदों से गुज़र गया वो तो ख़ुदा का ख़ौफ़ था पूजा नहीं तुझे सब मुंतज़िर थे मेरी निगाहें किधर उठें मैं ने भी एहतियात में देखा नहीं तुझे शायद पलट के देख ले तू ही मेरी तरफ़ मैं ने इसी उमीद पे रोका नहीं तुझे तेरे ख़याल साथ थे मेरे क़दम क़दम मैं तो किसी क़दम पे भी भूला नहीं तुझे अंदेशा-ए-जुदाई के डर में जिया हूँ मैं ये मत समझ के टूट के चाहा नहीं तुझे वो पल हराम हो गया 'मश्कूर' के लिए जिस पल तसव्वुरात में पाया नहीं तुझे