ऐसा ये दर्द है कि भुलाया न जाएगा मेआ'र-ए-इश्क़ उन से बढ़ाया न जाएगा इस बार उन से कह दो क़दम सोच कर रखें उजड़ा जो फिर ये शहर बसाया न जाएगा जो लोग बुग़्ज़ दिल में छुपाए हैं आज भी उन से मिरे मकान में आया न जाएगा हक़ बात बोलने से किया जिस किसी ने ख़ौफ़ महफ़िल में फिर कभी भी बुलाया न जाएगा थे मुत्तफ़िक़ तो बात से मेरी सभी मगर शेवा मिरा ख़याल बनाया न जाएगा शायद इसी लिए नहीं आए वो मेरे पास जो आ गए तो छोड़ के जाया न जाएगा गर एहतिराम कर न सके बज़्म-ए-नाज़ का शर्मिंदगी से सर को उठाया न जाएगा ज़हर-आब मेरे वास्ते वो ले तो आएगा साक़ी से जाम हम को पिलाया न जाएगा 'असरा' बना लो शौक़ को अपने जुनूँ की आग इक बार बुझ गई तो जलाया न जाएगा