ऐसे आलम में भला किस का पकड़ता दामन थे सभी लोग जहाँ ख़स्ता दरीदा-दामन आज आलूदा नज़र आता है दामन उस का जिस का मशहूर-ए-ज़माना रहा उजला दामन इतनी फ़ुर्सत है किसे कौन भला देखेगा अश्क-ए-ख़ूनीन से लबरेज़ किसी का दामन है बजा आप की अंगुश्त-नुमाई लेकिन कभी देखें तो सही आप भी अपना दामन गुल-ए-उम्मीद से फिर आज वो ख़ुशबू फूटी जिस से 'मक़बूल' मिरी ज़ीस्त का महका दामन