ऐसे मंतर भी हो गए ईजाद लक्ष्मी भी सरस्वती भी मिली वो जो हम-मंज़िली नहीं भूले उन को तौफ़ीक़-ए-हम-रवी भी मिली दुश्मनों ही से दुश्मनी भी मिली और दर-पर्दा रहबरी भी मिली दोस्त ही जान को भी आते रहे दोस्तों ही से ज़िंदगी भी मिली अपने प्यारों से प्यार हम को तो था रंज पाए मगर ख़ुशी भी मिली जुस्तुजू की मज़ीद बख़्शी देख गुल जो ढूँडा बकावली भी मिली ज़िंदगी थी फ़क़त नशेब-ओ-फ़राज़ या कभी सत्ह-ए-मुस्तवी भी मिली मूसला-धार ने'मतें बरसीं उन में कोताह-दामनी भी मिली