ऐसी नई कुछ बात न होगी ख़त्म-ए-सहर तक रात न होगी मेरी जहाँ पर बात न होगी तेरी भी औक़ात न होगी कैसे बुझेंगे जलते मसाइल खुल कर जब तक बात न होगी अहल-ए-सहर इस दर्जा मगन हैं जैसे कभी अब रात न होगी मेरे नहीं तो ग़ैर के हो लो तन्हा बसर औक़ात न होगी सूरज का जलना बुझना क्या ख़त्म ये काली रात न होगी दिल का सफ़र शो'लों का सफ़र है शबनम की बरसात न होगी बाज़ी-ए-दिल 'असरार' अगर है मात भी तेरी मात न होगी