ऐसी तहरीर जो आँसू की झड़ी साबित हो फिर तवक़्क़ो कि मोहब्बत भी कड़ी साबित हो क्यों बिछाते हो मिरी राह में लफ़्ज़ी काँटे दो वो पैग़ाम जो मोती की लड़ी साबित हो तेरी शमशीर का शाख़-ए-गुल-ए-उल्फ़त पे हो वार कैसे मुमकिन कि वो फूलों की छड़ी साबित हो बे-नियाज़ी तिरी बढ़ती ही रही रोज़-ओ-शब तेरी फ़ुर्क़त में कोई अच्छी घड़ी साबित हो मौत आनी है तो आ जाए किसी दिन लेकिन ज़िंदगी भी कभी राहों में पड़ी साबित हो काश आ जाए यक़ीं मेरी मोहब्बत का तुझे मेरी चाहत तिरी हर शय से बड़ी साबित हो रूठ कर जब मैं चलूँ राह-ए-अदम की जानिब राह रोके तिरी आवाज़ खड़ी साबित हो दिल में चाहत है 'ग़ज़ल' सिर्फ़ तुझे पाने की कोई तो वस्ल की अनमोल घड़ी साबित हो