ऐसी वहशत पे मैं क़ुर्बान भी हो सकता हूँ मैं जो दरिया हूँ बयाबान भी हो सकता हूँ हँसने रोने के अलावा भी रसाई है मिरी मैं अगर चाहूँ तो हैरान भी हो सकता हूँ मैं कि जिस ख़ाक में पामाल हुआ जाता हूँ मैं इसी ख़ाक पे एहसान भी हो सकता हूँ मुझ पे मुश्किल न बना गुज़री हुई यादों को मैं तुझे भूल के आसान भी हो सकता हूँ इतने ग़म देते हुए ये भी न सोचा उस ने मैं किसी ग़म में परेशान भी हो सकता हूँ मैं कि जिस शौक़ में आबाद हूँ 'मक़्सूद' 'वफ़ा' मैं उसी शौक़ में वीरान भी हो सकता हूँ