अजब फ़रेब सा वो उस का मुस्कुराना था उसे तो जैसे फ़क़त मुझ को आज़माना था ग़ज़ब की बात कि तुम को भी इस ज़माने में मिरा ही घर था जहाँ बिजलियाँ गिराना था उसे जहाँ में कोई दूसरा अदू न मिला नज़र में उस की फ़क़त मैं ही इक निशाना था जो सोज़-ए-ग़म से मुझे हर-नफ़स बचाता रहा ख़याल-ए-यार की पलकों का शामियाना था तू दिल का सादा था 'आज़िम' तुझे पता न चला कि दिल लगाना यहाँ सिर्फ़ दिल जलाना था