अजब हुआ कि मुझे मौत से हयात हुई जब उस की ज़ात में तहलील मेरी ज़ात हुई हर एक लफ़्ज़ सितारे में हो गया तब्दील तमाम रात मिरी आसमाँ से बात हुई सजा दिए थे मुंडेरों पे बे-क़रार चराग़ दरून-ए-रात मुझे और एक रात हुई हरी रुतों में हमें शाख़ शाख़ देखना तुम वो फूल फूल खिला मैं भी पात पात हुई मैं साँप सीढ़ी से पाताल तक गिराई गई मैं जान ही न सकी जीत थी कि मात हुई तवील उड़ान ने मादूम कर दिया है वजूद मैं बे-सबात थी कुछ और बे-सबात हुई तमाम होने न होने की साअ'तों में 'सहर' वो एक शक्ल मुझे पूरी काएनात हुई