अजब कशिश है पस-ए-इस्म-ए-ज़ात चलती हुई तवील सज्दे में है काएनात चलती हुई मिली थी राह में इक बे-क़रार परछाईं घर आ गई है मिरे साथ साथ चलती हुई तुलू-ए-सुब्ह से पहले ग़ुरूब-ए-शाम के बाद ठहर गई मिरे सीने में रात चलती हुई सो मैं ने बहस न की गुफ़्तुगू को ख़त्म किया निकल गई थी बहुत दूर बात चलती हुई बिछड़ गया था वहीं वक़्त साथ चलता हुआ भटक गई थी जहाँ काएनात चलती हुई कुछ इस तरह से सदा दी है इक नज़र ने 'नबील' ठिठक के रुक गई जैसे हयात चलती हुई