अजब सी गर्द जमी है यहाँ फ़ज़ाओं में कि जैसे धुँद मिली हो कहीं हवाओं में जो मंज़िलों के निशानात दे रही हैं तुम्हें हमारी गूँज भी शामिल है इन सदाओं में किसी के हिज्र में आँखें निखर गईं अपनी ये भीग भीग के डूबी रही दुआओं में उन्ही के याद में रहता है चाँद भी शादाँ वो जिन की ख़ुशबू अभी तक है मेरे गाँव में वो जिस को कहते थे तहज़ीब मर चुकी 'आसिम' पनाह ढूँडिए जा कर कहीं गुफाओं में