अज़ल से ले के अबद तक चराग़-ए-फ़ानी हूँ हवा के दोश पे लिक्खी हुई कहानी हूँ तू जानता है मिरी बे-घरी के क़िस्से को मैं ला-मकाँ से मकाँ तक तिरी कहानी हूँ मैं रौशनी हूँ मैं ख़ुश्बू हूँ मुझ को देखो तो कहीं चराग़ कहीं रात की मैं रानी हूँ मैं बादलों में छुपी रहमत-ए-ख़ुदावंदी कहीं घटा तो कहीं बारिशों का पानी हूँ वो जिस ने मुझ को पढ़ा है वरक़ वरक़ 'अफ़रोज़' उसी की ज़ात में मैं गुम-शुदा कहानी हूँ